अभिमान दैनिक लेखनी काब्य प्रतियोगिता -20-Sep-2023
अभिमान
हे नर तू क्यौ करता है, माया पर इतना अभिमान।
माया से मिलता है जग में क्षणभर का ही सम्मान
मन में निश्छलता रख छोड़ दे तू यह अभिमान।
श्रेष्ठ बनने के चक्कर में क्यौ खोता है पहचान।।
माया तो है जग ब्यापिनी क्षणभंगुर है ये संसार।
माया के बलबूते पर नहीं हो सकता भव से पार।।
धन बैभव के चक्कर में पड़ क्यौ करता है घमंड।
वक्त के साथ चलने से खुशियां मिलती हैं प्रचंड।।
घड़ा पाप का भर रहा है अब भी ले तू पहचान ।
न जाने कब वक्त बदले क्यौ करता हैअभिमान।।
अहंकार के बस में होकर मेरा मेरा कहता है।
झूठ कपट पाखंड रचा, नहीं किसी से डरता है।।
दो दिन का यौवन है, फिर काया निर्बल होगी।
रोग बढ़ेंगे सब दूर रहेंगे, हिम्मत भी साथ न देगी।।
छोड़कर यह हेरा फेरी, बनजा तू अच्छा इंसान ।
मालूम नहीं कब कयामत हो, छोड़दे तूअभिमान।
रावण कंस दुर्योधन इन सब ने किया अभिमान।
बुरी तरह इन सबने गंवाये थे अपने अपने प्राण।।
आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा "पचौरी"
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
21-Sep-2023 07:38 AM
सुन्दर सृजन और संदेश देती हुई रचना
Reply
Gunjan Kamal
20-Sep-2023 09:47 PM
👏👌
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Zakirhusain Abbas Chougule
20-Sep-2023 04:30 PM
Nice
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